NARAYAN




सूर्य नारायण


कहाँ कहाँ तू छिपेगा, तेरे ही प्रकाश से दिखता है हमें
तेरी अँधेरी रात में भी, सपने में तू मिलता है मुझे


आगे बड़ा दरिया है, ऊँचे पहाड़ों पे चढ़ना है
पर रोशनी सा तू सारथी, तो तुझसे मिलना क्या मुश्किल है


क्षितिज में तेरा वास है, पर मुझको तेरी प्यास है
सागर में दीखता है मुझे, बस डूबने का  प्रयास है


तू पीछे भी है आगे भी है, जल में भी है स्थल में भी है
कण कण में तेरा प्रकाश है, तू मुझमे ही है तू  मुझमे ही है।

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